15-07-73  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

लगाव और स्वभाव के बदलने से विश्व-परिवर्तन

नजरों से निहाल करने वाले, दु:ख व अशान्ति से दूर ले जाने वाले, मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा देने वाले, लाइट हाउस और माइट हाउस बनाने वाले, सर्व की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले, विश्व-कल्याणकारी बाबा बोले:-

क्या आवाज़ से परे शान्त-स्थिति इतनी ही प्रिय लगती है कि जितनी आवाज़ में आने की स्थिति प्रिय लगती है? आवाज़ में आना और आवाज़ से परे जाना ये दोनों ही एक समान सहज लगते हैं या आवाज़ से परे जाना मुश्किल लगता है? वास्तव में स्वधर्म शान्त-स्वरूप होने के कारण आवाज़ से परे जाना अति सहज होना चाहिए। अभी-अभी एक सेकेण्ड में जैसे स्थूल शरीर द्वारा कहीं भी जाने का इशारा मिले तो जैसे जाना और आना ये दोनों ही सहज अनुभव होते हैं, वैसे ही इस शरीर की स्मृति से बुद्धि द्वारा परे जाना और आना ये दोनों ही सहज अनुभव होंगे। अर्थात् क्या एक सेकेण्ड में ऐसा कर सकते हो? जब चाहें शरीर का आधार लें और जब चाहें शरीर का आधार छोड़ कर अपने अशरीरी स्वरूप में स्थित हों जायें, क्या ऐसे अनुभव चलते-फिरते करते रहते हो? जैसे शरीर धारण किया वैसे ही फिर शरीर से न्यारे हो जाना इन दोनों का क्या एक ही अनुभव करते हो? यही अनुभव अन्तिम पेपर में फर्स्ट नम्बर लाने का आधार है। जो लास्ट पेपर देने के लिए अभी से तैयार हो गये हो या हो रहे हो? जैसे विनाश करने वाले एक इशारा मिलते ही अपना कार्य सम्पन्न कर देंगे, अर्थात् विनाशकारी आत्मायें इतनी एवर-रेडी  हैं कि एक सेकेण्ड के इशारे से अपना कार्य अभी भी प्रारम्भ कर सकती हैं। तो क्या विश्व का नव-निर्माण करने वाली अर्थात् स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माएं ऐसे एवर-रेडी हैं? अपनी स्थापना का कार्य ऐसे कर लिया है कि जिससे विनाशकारियों को इशारा मिले?

जैसे यादव सेना ने फुल फोर्स से तैयारी की हुई है, क्या वैसे ही पाण्डव सेना भी अपनी सर्व तैयारियाँ कर समय का इन्तजार कर रही हैं?-ऐसे एवर-रेडी हो? जैसे लाइट हाउस और पॉवर हाउस) एक सेकेण्ड के स्विच ऑन करने से चारों ओर लाइट व माइट फैला देते हैं, क्या ऐसे ही पाण्डव सेना एक सेकेण्ड के डायरेक्शन प्रमाण लाइट हाउस और माइट हाउस बन सर्व-आत्माओं को लाइट और माइट का वरदान दे सकती हैं? जैसे स्थूल नज़र एक सेकेण्ड में एक स्थान पर बैठे चारों ओर देखती हैं, क्या ऐसे ही तीसरे नेत्र द्वारा एक सेकेण्ड में आप चारों ओर न सिर्फ भारत लेकिन सारे विश्व की आत्माओं को नज़र से निहाल कर सकते हो? जैसे सरल और सहज रीति से स्थूल नेत्र द्वारा नज़र फैला सकते हो, क्या वैसे ही आप नज़र से निहाल कर सकते हो? गायन भी है-एक सेकेण्ड में तीसरा नेत्र खुलने से विनाश हो गया। विनाश के साथ स्थापना तो है ही। बाप के साथसाथ बच्चों का भी गायन है। क्या तीसरा नेत्र ऐसा पॉवर फुल है जो दूर तक नज़र जा सके? जैसे स्थूल नेत्र की नज़र कमजोर होती है तो दूर तक नहीं देख सकती, क्या वैसे ही अपने तीसरे नेत्र की शक्ति देखते रहते हो?

तीसरे नेत्र को शक्तिशाली बनाने के लिए केवल मुख्य दो शब्दों पर अटेन्शन चाहिए। तीसरे नेत्र में कमज़ोरी आने की भी वही दो बातें हैं। वह कौन-सी? स्थूल नज़र के कमज़ोर होने का कारण क्या होता है?-ब्रेन-वर्क का ज्यादा होना। बातें तो वही हैं लेकिन इन सभी बातों को दो शब्दों के सार में लाने से अटेन्शन रखना सहज हो जाता है। तो कमजोरी लाने के दो शब्द हैं -- एक लगाव, दूसरा पुराना स्वभाव। किसी को अपना पुराना स्वभाव कमज़ोर करता है और कोई को किसी प्रकार का भी लगाव कमज़ोर करता है। यह दो मुख्य कमजोरियाँ हैं। इसका विस्तार बहुत है। हरेक का कोई- ना कोई लगाव है और हरेक में नम्बरवार परसेन्टेज में अभी तक पुराना स्वभाव है। यदि यह स्वभाव और लगाव बदल जाय तो विश्व भी बदल जाय। क्योंकि जब विश्व के परिवर्तक स्वयं ही नहीं बदले हैं तो वे विश्व को कैसे बदल सकते हैं?

अपने में चेक करो कि क्या किसी भी प्रकार का लगाव है? चाहे वह संकल्प के रूप में लगाव हो, चाहे सम्बन्ध के रूप में, चाहे सम्पर्क के रूप में और चाहे अपनी कोई विशेषता की ही तरफ हो। अगर अपनी कोई भी विशेषता में भी लगाव है तो वह भी लगाव बन्धन-युक्त कर देगा और वह बन्धन-मुक्त नहीं करेगा क्योंकि लगाव अशरीरी बनने नहीं देगा और वह विश्वकल्याणकारी भी बन नहीं सकेगा। जो अपने ही लगाव में फँसा हुआ है वह विश्व को मुक्ति व जीवनमुक्ति का वर्सा दिला ही कैसे सकता है? लगाव वाला कभी सर्व-शक्ति सम्पन्न हो नहीं सकता, लगाव वाला धर्मराज की सजाओं से सम्पूर्ण मुक्त सलाम देने वाला नहीं बन सकता। लगाव वाले को सलाम भरना ही पड़ेगा और लगाव वाले सम्पूर्ण फर्स्ट जन्म का राज्य भाग्य पा न सके। इसी प्रकार पुराने स्वभाव वाले नये जीवन, नये युग का सम्पूर्ण और सदा अनुभव नहीं कर पाते। हर आत्मा में भाई-भाई का भाव न रखने से स्वभाव एक विघ्न बन जाता है। विस्तार को तो स्वयं भी जानते हो। लेकिन अभी क्या करना है? विस्तार को जीवन में समा कर बाप-समान बन जाना है। न कोई पुराना स्वभाव हो और न कोई लगाव हो। जबकि तन, मन और धन सभी बाप को समर्पण कर दिया, तो देने के बाद फिर मेरा विचार, मेरी समझ और मेरा स्वभाव यह शब्द ही कहाँ से आया? क्या मेरा अभी तक है या मेरा सो तेरा हो गया? जब कहा-’मेरा सो तेरा’ -तो मेरा मन समाप्त हो गया ना? मन और तन बाप की अमानत है। आपकी तो नहीं है न? ‘मेरा मन चंचल है’-यह कहना कहाँ से आया? क्या अभी तक मेरा-पन नहीं छूटा? मेरा-पन किसमें होता है? बन्दर में, वह खुद मर जायेगा लेकिन उसका मेरा-पन नहीं मरेगा। इसलिये चित्रकारों ने महावीर को भी पूँछ की निशानी दे दी है। हैं महावीर लेकिन पूँछ ज़रूर है। तो यह पूँछ कौन-सी है? लगाव और स्वभाव की। जब तक इस पूँछ को आग नहीं लगाई है, तब तक लंका को आग नहीं लग सकती। तो विनाश की वार्निंग की सहज निशानी कौन-सी हुई? इसी पूँछ की आग लगानी है। जब सभी महावीरों की लगन की आग लग जायेगी तो क्या यह पुराना विश्व रहेगा? इसलिये अब सभी प्रकार के लगाव और स्वभाव को समाप्त करो।

जैसे विनाशकारी आत्मायें विनाश के लिए तड़पती हैं, क्या ऐसे ही आप स्थापना वाले विश्व-कल्याण के लिये तड़पते हो? ऐसी सेल्फ सर्विस और विश्व की सर्विस इन दोनों के लिये नये-नये इन्वेन्शन निकालते हो? जैसे वह लोग अभी इन्वेन्शन कर रहे हैं कि ऐसे पॉवरफुल  यन्त्र बनायें जो विनाश सहज और शीघ्र हो जाये तो क्या ऐसे आप महावीर, सायलेन्स  की शक्ति के इन्वेन्टर ऐसा प्लान  बना रहे हो कि जो सारे विश्व को परिवर्तन होने में अथवा उसे मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा लेने में सिर्फ एक सेकेण्ड ही लगे और सहज भी हो जाये? आप मुआफिक पैतीस वर्ष न लगें। तो ऐसी रिफाईन इन्वेन्शन से एक सेकेण्ड में नज़र से निहाल, एक सेकेण्ड में दु:खी से सुखी, निर्बल से बलवान और अशान्ति से शान्ति का अनुभव करा सको। क्या ऐसे रिफाईन रूहानी शस्त्र और युक्तियाँ सोचते हो कि एक सेकेण्ड में उनका तड़पना बन्द हो जाय? जैसे बम द्वारा एक सेकेण्ड में मर जायें, वैसे एक सेकेण्ड में उनको वरदान, महादान दे सको, क्या ऐसे महादानी और ऐसे वरदानी बने हो? क्या सर्व की मनोकामनाएं पूरी करने वाली कामधेनु बने हो, अब क्या स्वयं में कोई कामना तो नहीं रही हुई है ना? अगर अपनी कोई कामना होगी तो कामधेनु कैसे बनेंगे? ‘मेरा नाम हो’, और मेरी शान हो’’-यह कामना भी नहीं हो। समझा?

ऐसे एक सेकेण्ड में तीसरे नेत्र द्वारा विश्व को नज़र से निहाल करने वाले, एक सेकेण्ड में अशान्ति और दु:ख से पार ले जाने वाले, लगाव और स्वभाव से अतीत कर्मातीत स्थिति में स्थित होने वाले, मुक्ति और जीवनमुक्ति के वर्से के प्राप्ति के जीवन में सदा रहने वाले, मुक्त और जीवनमुक्त आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।